तीर्थराज सम्मेदशिखर के २० टोंकों से २० तीर्थंकरों के साथ ८६ अरब ४८८ कोड़ाकोड़ी | १४० कोडी १०२७ करोड ३८ लाख ७० हजार तीन सौ तेईस मुनि कर्मों को नाश कर मोक्ष पधारे। इस कारण इस भूमि का कण-कण पूजनीय एवं वंदनीय है। सभी पापों का संहार करने वाले तीर्थराज की वंदना महान् पुण्य का कारण है। एक बार इस तीर्थ की वंदना करने से ३३ कोटि २३४ करोड़ ७४ लाख उपवास का फल मिलता है। गिरिराज का प्रभाव है कि विशाल जंगल में नाना प्रकार के ब्रूहर जीव हैं किन्तु आज तक किसी भी तीर्थयात्री को किसी प्रकार की कोई बाधा नहीं पहुँचाई । यही तो इसका प्रभाव है। आचार्यों ने आगम ग्रंथों में लिखा है कि इस १२ योजन (६६ मील) प्रमाण विस्तार वाले सिद्धक्षेत्र में भव्य राशि कैसी भी हो, अत्यन्त पापी जीव भी इसमें रहता हो / जन्म लेता हो, तो भी ४६ जन्मों के बीच में कर्म नाश कर बंधन मुक्त हो जाता है।
इसीलिए संसार में सम्मेदशिखर तीर्थ की वंदना का अचिन्त्य फल माना गया है। वर्तमान में सम्मेदशिखर सिद्धक्षेत्र पर अनेक दिगम्बर जैन संस्थाओं के द्वारा विविध जिनमंदिर, आश्रम, धर्मशाला आदि का संचालन हो रहा है। भारतवर्षीय दिगम्बर जैन तीर्थक्षेत्र कमेटी के द्वारा भी समय-समय पर क्षतिग्रस्त टोंकों एवं चरणचिन्हों का जीर्णोद्धार किया जाता है। पूज्य गणिनीप्रमुख आर्यिकाशिरोमणि श्री ज्ञानमती माताजी सदैव कहा करती हैं कि मेरे गुरुदेव पूज्य आचार्य श्री वीरसागर महाराज कहते थे-
जिसने जीवन में सम्मेदशिखर की वंदना नहीं की, आचार्य श्री शांतिसागर महाराज के दर्शन नहीं किये उसका जीवन अधूरा है। अर्थात् तीर्थों में तीर्थ शिखर जी एवं गुरुओं में गुरु श्री शांतिसागर जी का दर्शन प्रत्येक भव्यात्मा के लिए कल्याणकारी माना गया है। ऐसे उस पावन तीर्थ सम्मेदशिखर जी एवं वहाँ से मुक्ति को प्राप्त हुए अनन्तानन्त सिद्ध भगवन्तों को मेरा अनन्तानन्तबार वंदन है और अन्त में यही भावना है-
भगवन् ! इस सम्मेदशिखर का, पुनः पुनः दर्शन पाऊँ ।
यही भावना है मन में, सिद्धों के गुण में रम जाऊँ ।।
इसी
क्षेत्र से कभी मुझे, निर्वाण धाम भी मिल जावे ।
सिद्ध भक्ति मेरे जीवन में, सिद्ध अवस्था दिलवाये ।।